बॉलीवुड में फिल्मों की री-रिलीज़ का ट्रेंड: क्या दर्शकों ने इसे किया पसंद?

Khushboo Parveen
By Khushboo Parveen - Intern
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Laila Majnu Re Release
(Image Source: Social Media Sites)

इस साल गर्मियों में अगर आपने BookMyShow पर फिल्म टिकट्स चेक की होंगी, तो शायद आपको ऐसा लगा होगा कि आप समय में पीछे चले गए हैं। सिनेमा हॉल में ‘सिंघम’, ‘ताल’, ‘मैंने प्यार किया’ और ‘रहना है तेरे दिल में’ जैसी फिल्में फिर से दिखाई जा रही थीं। ये फिल्में फिर से रिलीज़ की गई थीं ताकि पुराने दर्शकों में एक बार फिर से वही जोश भरा जा सके और नई पीढ़ी को थिएटर में इन क्लासिक फिल्मों का अनुभव कराया जा सके। लेकिन क्या ये प्रयोग सफल रहा?

साउथ इंडस्ट्री में पहले से चलन में है री-रिलीज़

साउथ सिनेमा में यह ट्रेंड सालों से देखा जा रहा है। जैसे हीरो रजनीकांत, कमल हासन, चिरंजीवी, नागार्जुन और विजय की पुरानी फिल्मों को री-रिलीज़ किया जाता है, फैंस की भीड़ उमड़ पड़ती है। ट्रेड एनालिस्ट रमेश बाला का कहना है कि साउथ में री-रिलीज़ फिल्मों का मकसद केवल फैंस को खुश करना होता है, खासकर नए दर्शकों को जो उस फिल्म को पहले थिएटर में नहीं देख पाए थे। इन फिल्मों का थिएटर रन अधिकतर सिर्फ एक हफ्ते का होता है।

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बॉलीवुड में इस बार क्या था खास?

हालांकि इस साल बॉलीवुड ने भी री-रिलीज़ का सहारा लिया, लेकिन इसका कारण अलग था। ट्रेड एनालिस्ट अतुल मोहन के मुताबिक, “मार्केट में नई फिल्मों की कमी थी, इसलिए मल्टीप्लेक्सेज़ को कुछ न कुछ दिखाना ही था। ऐसे में पुरानी हिट फिल्मों की री-रिलीज़ की गई।”

इस साल ‘तुम्बाड’, ‘लैला मजनू’ और ‘रॉकस्टार’ जैसी फिल्मों को भी री-रिलीज़ किया गया, जबकि ये फिल्में अभी 6-12 साल पुरानी ही हैं। इसका मकसद इन फिल्मों को नया जीवन देना था, खासकर ‘तुम्बाड’ और ‘लैला मजनू’ जैसी फिल्मों को, जो अपनी पहली रिलीज़ के समय फ्लॉप रही थीं लेकिन बाद में कल्ट क्लासिक बन गईं।

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क्या री-रिलीज़ फिल्मों को बचा सकती है?

‘तुम्बाड’, जो अपनी पहली रिलीज़ में ₹15 करोड़ कमाई कर पाई थी, री-रिलीज़ के बाद ₹38 करोड़ तक पहुंच गई, जिससे इसके सीक्वल की उम्मीदें बढ़ीं। इसी तरह, ‘लैला मजनू’ ने री-रिलीज़ में ₹11 करोड़ कमाए जबकि अपनी पहली रिलीज़ में केवल ₹2 करोड़ ही कमा पाई थी।

ट्रेड एनालिस्ट अतुल मोहन मानते हैं कि ‘लैला मजनू’ की सफलता एक अपवाद थी। जब यह फिल्म पहली बार आई थी, तब लोग त्रिप्ती डिमरी या अविनाश तिवारी को नहीं जानते थे। लेकिन री-रिलीज़ के वक्त त्रिप्ती डिमरी ‘एनिमल’ के बाद बड़ी स्टार बन चुकी थीं, जिससे फिल्म को फायदा हुआ।

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साउथ बनाम बॉलीवुड: अलग है री-रिलीज़ का तरीका

जहां साउथ में री-रिलीज़ का मकसद सुपरस्टार्स के बीते दौर की हिट फिल्मों का जश्न मनाना होता है, वहीं बॉलीवुड की री-रिलीज़ का उद्देश्य कम कमाई वाली फिल्मों को फिर से मौका देना है। उदाहरण के लिए, साउथ की फिल्म ‘आलवंदन’ री-रिलीज़ के बाद हिट हुई, लेकिन उसमें कमल हासन जैसे बड़े स्टार थे।

क्या री-रिलीज़ का ट्रेंड जारी रहेगा?

इस महीने शाहरुख खान की ‘वीर ज़ारा’, ‘कल हो ना हो’ और ‘करण अर्जुन’ जैसी सुपरहिट फिल्मों की री-रिलीज़ होने वाली है। वहीं अगले साल आमिर खान और सलमान खान की ‘अंदाज़ अपना अपना’ फिर से रिलीज़ होगी, जो इस ट्रेंड का असली इम्तिहान होगी।

हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि स्टार पॉवर ही इस ट्रेंड को चला रही है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह ट्रेंड फिलहाल थमने वाला नहीं है। आने वाले सालों में त्योहारों के सीज़न में बड़े बजट की फिल्मों के आते ही इस ट्रेंड की रफ्तार धीमी हो सकती है, लेकिन फिलहाल री-रिलीज़ का चलन बॉलीवुड में बरकरार रहेगा।

री-रिलीज़ का ट्रेंड एक अस्थायी समाधान के तौर पर उभरा है, खासकर तब जब नई फिल्मों की कमी हो। दर्शकों की पुरानी यादों और नई पीढ़ी के उत्साह को भुनाने के लिए यह एक अच्छा कदम है, लेकिन हर फिल्म के लिए यह फॉर्मूला काम करेगा, यह कहना मुश्किल है।

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