मुख्य कलाकार: तापसी पन्नू, विक्रांत मैसी, सनी कौशल
निर्देशक: जयप्रद देसाई
फिर आई हसीन दिलरुबा फिल्म की समीक्षा संक्षेप
फिर आई हसीन दिलरुबा दो पागल प्रेमियों की कहानी है। पहले भाग की घटनाओं के बाद, रानी (तापसी पन्नू) और ऋषु (विक्रांत मैसी) आगरा शिफ्ट हो जाते हैं। लेकिन वे अलग-अलग रहते हैं और खुले में एक-दूसरे से नहीं मिलते क्योंकि उन्हें पुलिस से पकड़े जाने का डर है। ऋषु एक ट्रैवल एजेंट को 25,000 रुपये की भारी रकम देता है, जिसने ऋषु को आश्वासन दिया है कि वह फर्जी पासपोर्ट बना देगा जिसके बाद यह जोड़ा हमेशा के लिए भारत छोड़कर थाईलैंड जा सकेगा।
इस बीच, रानी की मुलाकात अभिमन्यु (सनी कौशल) से होती है, जो एक कंपाउंडर है और जो उस पर पागल हो जाता है। दूसरी ओर, इंस्पेक्टर मृत्युंजय प्रसाद उर्फ मोंटी चाचा (जिम्मी शेरगिल) रानी से मिलता है। वह नील (हर्षवर्धन राणे) का चाचा है और चाहता है कि रानी को उसके भतीजे की हत्या के आरोप में जेल में डाल दिया जाए। उसे संदेह है कि ऋषु मरा नहीं है। वह रानी की हर गतिविधि पर नज़र रखता है और ट्रैवल एजेंट को भी गिरफ्तार कर लेता है।
ऋषु गुपचुप तरीके से रानी से मिलता है और वे कुछ समय के लिए शांत रहने की योजना बनाते हैं। रानी अभिमन्यु से शादी करने का फैसला करती है ताकि पुलिस को विश्वास हो जाए कि ऋषु सचमुच मर चुका है और वह आगे बढ़ चुकी है। योजना यह है कि सही समय पर ऋषु के साथ भाग जाए और अभिमन्यु का दिल तोड़ दे। लेकिन चीजें उम्मीद के मुताबिक नहीं चलतीं। आगे क्या होता है, यह फिल्म की बाकी कहानी है।
फिर आई हसीन दिलरुबा की कहानी समीक्षा
कनिका ढिल्लन की कहानी में कई ट्विस्ट और टर्न्स हैं लेकिन इसमें सिनेमाई स्वतंत्रताएं भी हैं। कनिका ढिल्लन की पटकथा दिलचस्प है लेकिन दूसरे भाग में थोड़ी उलझन भरी हो जाती है। कनिका ढिल्लन के संवाद फिल्म की प्रमुख विशेषताओं में से एक हैं।
जयप्रद देसाई का निर्देशन साफ-सुथरा है। निर्देशक को दर्शकों की रुचि बनाए रखना आता है और वह समय बर्बाद नहीं करते। चीजें तेज़ी से और मनोरंजक ढंग से सामने आती हैं। इंटरवल से पहले का ट्विस्ट अप्रत्याशित है और आश्चर्यचकित करता है। मगरमच्छ का एंगल भी फिल्म में तनाव और मनोरंजन को बढ़ाता है।
दूसरी ओर, फिल्म का दूसरा हिस्सा कमजोर है और घटनाएँ सुविधानुसार घटती हैं। हालाँकि घटनाएँ अप्रत्याशित हैं, लेकिन वे तर्क के विपरीत हैं। साथ ही, यह स्पष्ट है कि पुलिस को यह समझ में आ रहा है कि पात्रों ने पल्प लेखक दिनेश पंडित की किताबों से प्रेरणा ली है। फिर भी, वे इतने समझदार नहीं हैं कि उनकी किताबें पढ़कर यह जान लें कि उनकी योजना क्या है। पात्रों के बीच बदलते समीकरण भी दर्शकों को थोड़ी उलझन में डाल देंगे।
कलाकारों का प्रदर्शन
तापसी पन्नू शानदार दिखती हैं और एक उत्कृष्ट प्रदर्शन देती हैं। विशेष रूप से पुलिस पूछताछ के दृश्यों में वह छाप छोड़ती हैं। विक्रांत मैसी ने एक बार फिर बेहतरीन काम किया है और फिल्म की पागलपन को अच्छे से निभाया है। सनी कौशल एक बेहतरीन जोड़ हैं और अपने प्रदर्शन से दर्शकों को चौंका देते हैं। जिम्मी शेरगिल भरोसेमंद हैं। आदित्य श्रीवास्तव (एसीपी किशोर) ठीक हैं और काश उन्हें और भी करने को मिलता। भूमिका दुबे (पूनम) एक बड़ी छाप छोड़ती हैं। त्रुप्ति जगदीश खमकर (इंस्पेक्टर मीना) ठीक हैं।
संगीत और अन्य तकनीकी पहलू
फिल्म के गाने ‘हँसते हँसते’, ‘क्या हाल है’ और ‘आज़ाद’ भुला देने योग्य हैं। अनुराग सैइकिया का बैकग्राउंड स्कोर प्रभावी है और कुछ अलग है। विशाल सिन्हा की सिनेमाटोग्राफी प्रभावशाली है, खासकर उन दृश्यों में जो झूलते हुए जहाज और क्लाइमेक्स में फिल्माए गए हैं। निखिल कोवाले का प्रोडक्शन डिज़ाइन उपयुक्त है। वर्षा चंदनानी और शिल्पा मखीजा की कॉस्ट्यूम्स आकर्षक हैं, विशेष रूप से तापसी द्वारा पहनी गई साड़ियाँ। अब्बास अली मोगुल का एक्शन इस बार ज्यादा हिंसक नहीं है। हेमल कोठारी की एडिटिंग चुस्त है।
समीक्षा निष्कर्ष
कुल मिलाकर, ‘फिर आई हसीन दिलरुबा’ पहली फिल्म जितनी रोमांचक नहीं है, लेकिन फिर भी इसमें मनोरंजक दृश्यों और ट्विस्ट्स की भरमार है। कास्टिंग, पहली फिल्म की लोकप्रियता और बोल्ड व रोमांचक सामग्री के कारण, इसे बड़ी दर्शक संख्या मिलने की संभावना है।